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३७० ॥ श्री अवसान शाह जी ॥


पद:-

हर जगह श्री अवध है और हर जगह मिथिलापुरी।

हर जगह कैलाश काबा हर जगह काशी पुरी।

हर जगह बैकुण्ठ चारों हर जगह श्री मधुपुरी।

हर जगह सब तीर्थ सुर मुनि छोड़िये संगत बुरी।

मुरशिद करो मारग मिलै टूटै कपट की सब छुरी।५।

धुनि ध्यान नूर समाधि सन्मुख कृष्ण राधे छबि जुरी।

असुर दल लै अजा भागै फेरि कबहूँ नहिं घुरी।

यम काल मत्यू दूरि ते लखि लेंय निज मुख को मुरी।

निर्वैर निर्भय जियति हो तब आप सब अनुभव फुरी।

बेकार स्वांस न जान दो यह तन परम पावन पुरी।१०।

नहिं अन्त में यम दूत आकर देंय मुख भाला हुरी।

तन मन औ प्रेम हो ग़रक अवसान कह सो नहिं ढुरी।१२।