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३६८ ॥ श्री सच्ची जान जी रण्डी ॥


चौपाई:-

शीश मुकुट सोहैं आल कानन कुण्डल बिशाल केशर को तिलक

भाल आयुध भुज चारी।१।

पति बसन अंग साजे बांय दिशि रमा राजें कोटिन लखि मदन लाजैं

गरुड़ की सवारी।२।

सतगुरु करि जपै नाम सूरति धरि अष्ट याम तन तजि लें अचल धाम

होवै भव पारी।३।

भाखै यह सच्ची जान छोड़ो मति कुल की कान लीजै मम बिनय मानि

चेतो नर नारी।४।