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३४४ ॥ श्री गोपाल सिंह जी ॥


पद:-

सतगुरु करि सुमिरो निशि बासर हरि को कभी भुलाना मत।

सच्चे मातु पिता के सुत ह्वै कुल में दाग लगाना मत।

शान्ति दीनता को गहि प्यारे किसी को कभी सताना मत।

दु:ख सुक्ख सम मानि के अपनी नेत को कभी डिगाना मत।

कथा कीर्तन हवन औ पूजन हो तहँ कभी लुकाना मत।५।

पढ़ना सुनना प्रेम से हरि यश हँसना और बकाना मत।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि मिलि है ख्याल हटाना मत।

सन्मुख राम सिया रहैं हरदम तब तो नैन फिराना मत।

अमी पाय घट अनहद सुनि कै सुर मुनि लखि गश खाना मत।

करि परनाम प्रेम से मिलना नेकौ मन सकुचाना मत।१०।

नागिनि जगै चक्र सब बेधैं कमल खिलैं अलसाना मत।

गुप्त भेद यह अधिकारी बिन किसी को कभी बताना मत।१२।