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३२४ ॥ श्री कमिच्छा जी ॥


पद:-

कहैं कमिच्छा सुनिये मम सुत राम नाम को जे जन ध्यावैं।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै ते जियतै करतल करि पावै।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय जाय के दोनों कर्म जलावै।

सुर मुनि मिलैं सुनै घट अनहद पियै अमी रस क्या बतलावै।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख आय छटा छवि छावैं।५।

नागिनि जगै चक्र सब बैधैं खिलैं कमल महकैं अति आवैं।

सुखमन स्वांस विहँग मारग ह्वै जाय अपन घर घूमि दिखावै।

तन तजि निज पुर जाय बिराजै गर्भ बास ते छुट्टी पावै।८।