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३१३ ॥ श्री बचावन शाही जी ॥ (४)

सतगुरु करो मारग मिलै आनन्द लो निशि बार जी।

सुर मुनि जिसे चाहो बुला लो ख्याल का दै तार जी।

बनि जाव बाबू तार के लो दीनता उर धार जी।

विश्वास शान्ति औ सत्यता है प्रेम का श्रृंगार जी।

धुनि ध्यान लय परकाश हो सन्मुख सँवलिया यार जी।५।

अमृत पिओ अनहद सुनो क्या हो रही गुमकार जी।

हनुमान हर हरदम तुम्हारे सँग रहैं रखवार जी।

दोनो जहां में होय तब तो मान लो जयकार जी।

जिसने न हरि सुमिरन किया है उसकी जिन्दगी ख्वार जी।

तन त्यागि दोज़ख में पड़ै पल भर न कल चिक्कार जी।१०।