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३०३ ॥ श्री झक्के शाह जी ॥


पद:-

क्यों जोर पेंच से चलते फ़ौरन हैं माया के धक्के।

सान मान जिनके तन मन में ते गिरते हैं थक्के।

फेरि संभारि के उठि किमि पावैं छूट जात हैं छक्के।

मुरशिद करै भजन बिधि जानै ते होवैंगे पक्के।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि होय मिटैं शक्के।५।

अनहद सुनै दैव मुनि दर्शैं बिहँसि नैन ढक्के।

निरखैं राम सिया को हर दम सन्मुख में टक्के।

अन्त त्यागि तन राम धाम ले कहैं शाह झक्के।८।