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२९८ ॥ श्री पं. वियोगी जी नागर ॥


पद:-

कैसी राम नाम धुनि होती सुनिये रग रोंवन निशिवार।

हैर शै में है यही समानी सबको कियो पसार।

नाम अनादि इसी को कहते सुर मुनि सब रंकार।

सतगुरु करौ भजन बिधि जानौ छूटै द्वैत केंवार।

ध्यान प्रकाश समाधी जानो जहँ नहिं रहत बिचार।५।

अनहद बजै बन्द नहिं होवै क्या प्यारी गुमकार।

अमृत पिओ देव मुनि आवैं विहँसि कहैं बलिहार।

नागिनि उठै चक्र सब घूमै फूलैं कमल निहार।

चन्द्र सूर्य्य की होय एकता सुखमन करैं संभार।

विहँग मार्ग पच्छिम दिशि ह्वै कर दे तिरगुन से न्यार।१०।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख लो दीदार।

अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन निज पुर जाहु सिधार।

या के बिन जाने कोइ जग से होत नहीं है न्यार।

नर नारी चित चेत भजहु नित आप क लेहु सुधार।

तन औ समय मिला अति दुर्लभ मानो बचन हमार।

कहैं बियोगी दीन शान्ति बनि लूटौ जय जय कार।१६।