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२८२ ॥ श्री कमल सिंह जी ॥


पद:-

भजिये मंत्र परम लघु भाई।

बिधि हरि हर बश रहत जासु के सुर मुनि सब रहे ध्याई।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो छूटै भव की काई।

सब में ब्यापक सब से न्यारो रेफ बिन्दु कहलाई।

रं रं रं धुनि हर दम होती रोम रोम भन्नाई।५।

ध्यान प्रकाश समाधी होवै जहँ सुधि जात हेराई।

सुर मुनि मिलैं सुनै घट अनहद पियै अमी हरखाई।

नागिनि जगै चक्र सब बेधैं कमल खिलैं फर्राई

उड़ै तरंग मस्त हो तन मन मुख ते बोलि न आई।

पांच प्राण एक ठौर जाँय ह्वै सुखमन घाट नहाई।१०।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख दें छबि छाई।

छोड़ि शरीर जाय साकेतै कमल सिंह कहैं गाई।१२।