२७७ ॥ श्री बिन्ध्यबासिनी जी ॥
पद:-
बिन्ध्यबासिनी कहैं सुनो सुत सतगुरु बचन बड़ा सुखदाई।
करि विश्वास गहै जो प्रानी सो भव से जियतै बिलगाई।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोंवन से होत सदाई।
अमृत पियै सुनै घट अनहद सुर मुनि मिलैं दौरि चिपकाई।
राम सिया प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख रहैं हटैं नहिं राई।५।
नागिन जगै चक्र सब बेधैं कमल खिलैं क्या महक उड़ाई।
श्री काली जी लाय खिलावै भांति भांति की रोज मिठाई।
अन्त त्यागि तन चलि साकेत में बैठि जाय सब आस नसाई।८।