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२७५ ॥ श्री रँगौटे शाह जी ॥


पद:-

भक्त क भेष कर्म करैं खोंटे।

कोइ मुण्डित कोइ झुण्डित रहते कोइ दुबर कोई मोटे।

पर धन पर नारी पर धरनी छल बल ते करैं गोटे।

डाका मारै करैं दलाली सेंधि काटते चोटे।

अन्त समय यमदूत आय कर मुख पर देंय चपोटे।५।

प्राण निकारि चलैं लै यमपुर मग में करत खसोटे।

लै इजलास पै हाजिर करते दोउ कर रहैं दबोटे।

पेशी होय बोलि नहिं पावैं भूलैं बचन बनौटे।

हाथ हथकड़ी पाँवन बेड़ी डारि लगावैं सोंटे।

लै कराह में फेरि बिठावैं तप्त तेल जांय औंटे।१०।

चुरैं जलैं अति दुख कहै को नेक न पावैं बौटे।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जाना ते नहि जग मे लौटे।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि जियतै जानि अँगोटे।

अनहद सुनै पियै घट अमृत सुर मुनि कहैं सफ़ौटे।

नागिनि जागि जाय सीधी ह्वै चक्र चलैं भन्नौटे।१५।

उड़ै गमक जब खिलैं कमल सब एकै नाल जमौटे।

सन्मुख राधे कृष्ण बिराजैं छम छम बाजैं पौटे।

तिरगुन की लर छूटि टूटि गइ अब किमि कौन गंजौटे।

अन्त त्यागि तन निज पुर बैठे कहते शाह रंगौटे।१९।