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२७० ॥ श्री पण्डित पञ्चानन जी ॥ (२)

जे जन बसैं नन्दी ग्राम।

जाप बिधि सतगुरु से जानै सुफ़ल हो नर चाम।

ध्यान धुनि परकाश लय हो मिलैं सुर मुनि आम।

पियै अमृत सुनै अनहद बजत जो बसुयाम।

भरथ रिपुहन की छटा सन्मुख रहै सुखधाम।

अन्त तन तजि जाहि निज पुर को सकै फिर थाम।६।