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२४४ ॥ श्री अकबाल शंकर जी ॥


पद:-

मन तुम नाम से नेह लगाओ।

असुरन का दल पकड़ि बाँधि लो बैठि के मौज उड़ाओ।

ध्यान प्रकाश समाधि में जाय के शुभ औ अशुभ जराओ।

राम सिया की झाँकी सन्मुख हर दम लखि सुख पाओ।

अनहद घट में बाजै प्यारे सुर मुनि संघ बतलाओ।

कहैं अकबाल करो अब सतगुरु तब यह मारग पाओ।६।