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२३२ ॥ श्री किलकिली शाह जी ॥ (२)

रोते हो काहे यारों मुरशिद करो गहो मग।

धुनि ध्यान नूर लय हो भगि जांय तन से सब ठग।

सुर मुनि मिलैं लिपट कर जब जाव प्रेम में रंग।

अनहद सुनो बजै घट कौसर पिओ अजब ढँग।

राम सीता श्याम राधे बिष्णु कमला लखौ संग।५।

दीनता औ शान्ति से करि लेव जियतै फतेह जंग।

निर्बेर निर्भय जाव ह्वै कटि गिरै चाह क कठिन तंग।

तन त्यागि निज पुर बास लो मिटि जाय तब तो भव कि दंग।८।