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२२३ ॥ श्री फर्च शाह जी॥


पद:-

साधु क बाना वाँधि पियैं छिपि कारन खावैं मास।

मन माने कपड़े तन धारे बिषय कि तन मन आस।

परदरा वेश्या औ लड़के राखन में हैं पास।

करैं जबरदस्ती जब चाहैं मेल पुलिस से खास।

कोई अगर उन्हैं उपदेशै शिर पर देवैं बांस।५।

कुश्ती लड़ैं करैं नित वरजिश खेलैं जुआ औ तास।

करिखा बोलैं हंसै गलिन में कहूँ देंय कसि खांस।

कहीं नैन की सैन चलावै कहीं साधि लें सांस।

कहीं हाथ का करैं इशारा कहीं लेंय चट गांस।

यह लीला लखि लखि के भाई बहुत दु:ख के आँस।१०।

नर तन पायो भजन करन हित कीन्ह्यो सत्यानास।

अन्त समय यमदूत आय के गले में डारैं फाँस।

प्रान निकारि चलैं लै मारत देंय नर्क में बास।

हाथ पैर जंजीर से जकड़ैं मुख दें खूटा ठाँस।

फटकौ नेकौ बोल न फूटै तन रहे कीड़ा चाँस।१५।

अति दुर्गन्ध करै को वर्नन जहाँ न बारि बतास।

रहि रहि मुर्च्छा होत वहाँ पर मानहु तन भा लास।

नैन श्रवण नासिका कपोलन लपटे मच्छर डाँस।

चेत होय तस गहैं केश यम नोचैं जिमि कुश कास।

अन्धकार भय ब्याकुलता अति नेकौ नहीं प्रकास।२०।

यम गण निज निज काम रहे करि उन्है रह्यौ सब भास।

उन्है गन्धि नहि मालुम होवै बोलैं बड़ा सुपास।

सतगुरु करै भजन बिधि जानै तब हो सच्चा दास।

अन्त त्यागि तन राम धाम ले जहँ पूरन सुख रास।२४।


सोरथा:-

हाथी घोड़ा ऊँट बेचैं संत क भेस धरि।

अन्त लेंय जम लूट जांय नर्क में देंय धरि।१।