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२१७ ॥ श्री चमचम शाह जी॥


पद:-

अनुभव परम्परा चलि आई। सुनि गुनि चेतो लोग लुगाई॥

वेद शास्त्र उपनिषद संहिता औ पुरान कहैं गाई।

सुर मुनि सब इस बचन को मानत फरक परत नहिं राई।

हैं ह्वैगे ह्वै हैं युग युग की रीति यही है भाई।

सतगुरु करौ नाम बिधि जानौ खुलै मार्ग सुखदाई।५।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन खुलि जाई।

सुर मुनि मिलैं कहैं श्री हरि यश अनहद सुनो बधाई॥

नागिन जगै चक्र षट बैधैं सातौं कमल फुलाई।

सारे तीर्थ नहाव लोक सब देखौ निर्भय धाई।

राम सिया की झाँकी अद्भुद सन्मुख में छवि छाई।१०।

अमृत झरै गगन ते हर दम पावो आह बुताई।

चन्द्र सूर्य्य स्वर करैं एकता तब सुखमना कहाई।

तामे नारि चित्रणी राजै वामे बज्रणी बाई।

वाके अन्तर ब्रह्म नाड़ि है सब की जड़ कहलाई।

पच्छिम दिशि ते जावै प्राणी विहँग मार्ग अस्थाई।१५।

अजपा जाप यही है मानो सूरति शब्द में नाई।

इसी को राज योग हैं कहते तन मन प्रेम समाई।

अगणित जन्म सुकृत जिन कीन्ह्यो तिन यह लीन कमाई।

अन्त त्यागि तन मारि लात जग त्यागि दीन जिमि काई।

या से चेत करो नर नारी छोड़ि के जग औंघाई।२०।

जौन देव से प्रेम हो जाको सुमिरै मन को लाई।

कथा कीर्तन पाठ औ पूजा हवन धर्म ब्रत भाई।

सब सीढ़ी ऊपर के हित हैं समय पै देंय चढ़ाई।

जो नहिं मानै कहा हमारा सो फिरि धोका खाई।

चम चम शाह कहैं हरि अज्ञा रही सो दीन लिखाई।२५।