२०५ ॥ श्री मस्त शाह जी ॥
पद:-
सम्पादक उपदेशक बनि कोइ सार वस्तु को नहिं पैहौ।
मान बड़ाई संग न छोड़ै आखिर पीछे पछितै हौ।
सतगुरु करौ भजन बिधि जानौ जियतै तब भव तरि जैहौ।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन सुनि हरखैहो।
सुर मुनि मिलैं बजै घट अनहद अमी पाय निर्भय रहिहौ।५।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हरिदम सन्मुख छबि छैहौ।
शान्ति दीनता प्रेम से तब तो नित प्रति हरि के गुण गैहो।
अन्त समय तन त्यागि अचल पुर चढ़ि बिमान सुख से जैहौ।८।