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२०० ॥ श्री माधव शाह जी ॥ (२)

घट में फिरत निरंजन माला।

सतगुरु करि जप की बिधि जानो छूटै भव भय जाला।

ध्यान प्रकाश समाधी होवै अनहद की क्या ताला।

सुर मुनि मिलैं छकौ नित अमृत जियति बनो मतवाला॥

हर दम सन्मुख में छबि निरखौ राधे बसुदेव लाला।

अन्त त्यागि तन निज पुर जावो जो बाजत सुख साला॥