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१९२ ॥ श्री खड़भड़ शाह जी ॥


पद:-

लूटौ राम नाम धन दद्दा।

सतगुरु से सुमिरन बिधि जानो करो गरभ रिन अद्दा।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि श्याम प्रिया लखु सद्दा।

सुर मुनि मिलैं साज सुनु अनहद चाखु अमी क्या मद्दा।

तन के असुर भागि सब जावैं रोकि सकै नहि रद्दा।५।

अन्त समय साकेत में बैठो शुभग यान जड़े मद्दा।

सूरति शब्द क मारग यह है ठीक मिलावै हद्दा।

ईश्वर अंश कहाय यहां क्यों बने बैठ हो भद्दा।८।