१९० ॥ श्री अड़बड़ शाह जी ॥
पद:-
भजन बिन खांखर करत सियार।
सतगुरु करौ जाप बिधि जानौ तब सब जावैं हार।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि खुलि जावै एक तार।
अनहद सुनो अमी रस चाखो सुर मुनि करैं नित प्यार।
राम श्याम हरि शम्भु सामने हर दम हो दीदार।
अड़बड़ शाह कहैं तन तजि के निजपुर लेहु संभार।६।