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१८० ॥ श्री हग्गन शाह जी ॥


पद:-

शिष्य सतगुरु बचन मानै वही सतगुरु के जैसा हो।

नहीं तो पार नहिं होवै कठिन भव का ये ऐसा हो॥

ऐश आराम में भूलै अगर मिलि जाय पैसा हो।

अन्त तन तजि नरक भोगै फेरि जग जन्म भैंसा हो॥

ध्यान धुनि नूर लय पावै तो जारै कर्म कैसा हो।५।

सुनै अनहद मिलैं सुर मुनि न उस से फिर अनैसा हो॥

नाम हर दम रगन रोवन से बोलै जिमि सतैसा हो।

लखै सिय राम रा़धै श्याम सब उसका घरैसा हो।८।