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१७३ ॥ श्री निखट्टू शाह जी ॥


पद:-

नाम रूप न मानते जे वै न बोलैं चुप रहैं।

लय ध्यान नूर न जानते जे वै न बोलैं चुप रहैं।

सुर मुनि को नहिं पहिचानते जे वै न बोलैं चुप रहैं।

पढ़ि सुनि के ज्ञान बखानते जे वै न बोलैं चुप रहैं।४।

जप बिधि न गुरु करि जानते जे वै न बोलैं चुप रहैं।

हर दम न ताना तानते जे वै न बोलैं चुप रहैं।

मन मुखी काम को ठानते जे वै न बोलैं चुप रहैं।

पाप में मन सानते जे वै न बोलैं चुप रहैं।८।