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१६८ ॥ श्री मल्हर शाह जी ॥


पद:-

गुफ़तगू झूठ कहि सुनकर पाप का फांकते फंकना।

खोदा का नाम नहिं सुमिरै अन्त दोज़ख पड़ै झखना।

चुस्त चालाक बनि बैठे लगे हैं द्वैत के पखना।

मांगते भीख घर घर में चहैं अनमोल लें कंगना।४।

माल सब है जमा घट में बिना मुरशिद न हो चखना।

उन्हीं के हाथ में ताली दिया रव ने जमा रखना।

कहा फिर ऐ मेरे प्यारे दीन को दे के सब भखना।

कहैं मल्हर भजो हर दम मिटै भव जाल का कंखना।८।


शेर:-

बशर तन क हक़ है यही जान लो। कहैं मल्हर मेरे सखुन मान लो॥