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१६६ ॥ श्री हरि शरन दास जी ॥


दोहा:-

हरि के हित नित नेम से जल हम भरेन हमेस।

अन्त समय हरि धाम में जाय भयन फिरि पेस।१।

नाम हरि सरन दास है ग्वाल वंश है जान।

या में फरक न नेक है मानो बचन प्रमान।२।