१५५ ॥ श्री किशोरी शरन जी ॥ चौपाई:-कीन अमनियां तन मन लाई। ठाकुर हित जो बनन को जाई॥ अन्त समय हरि धाम सिधावा। नाम किशोरी शरन कहावा।२।