१५१ ॥ श्री जीवन दास जी ॥ चौपाई:-चूल्हा चौका हरि का कीन्हा। तन छूटा हरि पुर चलि दीन्हा॥ जीवन दास नाम है भाई। सत्य बचन हम दीन लिखाई।२।