१४० ॥ श्री खसोटे शाह जी ॥
पद:-
निरगुण चावल सरगुण दाल। पावै सतगुरु का कोइ लाल॥
निरगुन रोटी सरगुण साग। पावै होय जौन बेदाग़॥
निरगुन पूरी सरगुन खांड़। पावै जौन मिटै जग जाड़॥
निरगुन मिश्री सरगुन कन्द। पावै जौन मिलै आनन्द॥
निरगुन पेड़ा सरगुन बरफ़ी। पावै जौन हटै दुइ तरफ़ी।५।
निरगुन तेज रूप है सरगुन। पावै जौन छुटै सब अवगुन॥
निरगुन जैसे चरनोदक है। सरगुन भक्तन का मोदक है॥
निरगुन पंचामृत है जानो। सरगुन सब व्यंजन है मानो॥
निरगुन त्रिबिधि समीर है भाई। सरगुन सुन्दर है फुलवाई॥
निरगुन बारि प्यास को हरई। सरगुन भोजन तन बल करई।१०।
निरगुन सब में परिपूरन है। सरगुन सब का मानो तन है॥
निरगुन सोना सरगुन भूषन। पहिने ताको हो प्रसन्न मन॥
निरगुन क्षीर औ सरगुन मक्खन। पावै सो तर होवै तत्छन॥
निरगुन रुई औ सरगुन बस्तर। पावै जौन न काटै मच्छर॥
निरगुन ईंधन सरगुन आगी। पावै जौन जगत भय त्यागी॥
कहैं खसोटे शाह सुनाई। कहन में दुइ है एकै भाई।१६।