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१२६ ॥ श्री सत्य वती जी ॥


पद:-

घनश्याम प्रिय अब जैहौ कहां मैं राखौंगी उर में मूंद मूंद।

छबि देखि के सान औ मान हटा नैनन जल टपकत बूंद बूंद।

संसार कि बातैं भूल गईं अस प्रेम भरो तन खूंद खूंद।

कह सत्य वती सतगुरु कि दया मेरी छूट गई भव फूंद फूंद।४।


दोहा:-

धुनी ध्यान परकाश लै, सतगुरु किरपा जान।

सत्य वती कह श्याम प्रिय, हर दम सन्मुख मान॥