१२४ ॥ श्री श्याम कुँवरि जी ॥
पद:-
सुरति कि डोरि शब्द का घैला लै जल भरन चलीं पनिहार।
अट पट डगर चोर बहु लागे जावै जो हुशियार।
इधर उधर को ताकि सकै नहिं धरती पगन संभारि।
जाय के कूप के तट जस पहुँची झुकि गई चट सुकुमार।४।
डोरि औ घड़ा संग लै डूबी किस बिधि सकै पुकारि।
सतगुरु की दाया से निकसी सो कुलवंतिन नारि।
परि पूरन जहँ कूप भरा है पर नहिं नेकौ वारि।
श्याम कुँवर कहै जावै सोई जो न सकै हिय हारि।८।
दोहा:-
श्याम कुँवरि कह श्याम प्रिय हर दम दर्शन देंय।
श्री सतगुरु के बचन को तन मन प्रेम से सेय॥