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११८ ॥ श्री ओंकार सिंह जी ॥


पद:-

सब सृष्टि में तुम हौ रमें सब सृष्टि तुम में है रमी।

करि प्रेम सतगुरु से लखौ इतनी ही तुम में है कमी॥

ध्यान धुनि परकाश लै पावौ मिटै सब गम हमी।

राम श्याम समेत शक्तिन होय झाँकी चमचमी॥

जियति में जो तै करी तन छोड़ि हरि पुर सो थमी।

ओंकार कह इस मार्ग पर कोइ धीर बीर क पग जमी।३।