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११६ ॥ श्री स्वामी ध्यानानन्द जी ॥


पद:-

मधुर मधुर अनहद घट बाजै सूझि परै जब ध्यान धरौ जी।

पच्छिम मार्ग से चढ़ौ अटा पै पांच प्राण जब एक करौ जी॥

रवि शशि तारे सुर मुनि दर्शैं नूर होंय चलि लै में परौ जी।

रोम रोम ते नाम कि धुनि हो सन्मुख सीता राम करौ जी॥

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानौ बिन रसना हरि नाम ररौ जी।

ध्यानानन्द कहैं यह बानी तन मन से जब जियति मरौ जी।३।