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१०८ ॥ श्री सूर्य नारायण जी ॥


पद:-

विश्वास पात्र जो जीव होंय ताको निर्भय सब कार्य सरै।

सतगुरु करिके मुद मंगल ह्वै कोटिन को लैकर जियति तरै।

दुख सुख को मानै सम हर दम पग फेरि पछारी नाहिं धरै।

धुनि ध्यान समाधि प्रकाश लहै रसना बिन प्रभु को नाम ररै।

सन्तोष शांति दाया श्रद्धा तन मन औ प्रेम को एक करै।

कहैं सूर्य नारायण शूर बीर जा को हरि सब में देखि परै।६।