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५४ ॥ श्री बूचा शाह जी ॥


पद:-

बिना सतगुरु नहीं मिलता बड़े चक्कर क कूचा है।

पाय नर तन न हो गाफ़िल कहत यह सत्य बूचा है।

ध्यान धुनि नूर लै जानो जहां कोई न दूजा है।

सुरति औ शब्द का मारग जिसे जग आय रूचा है।४।

राम सीता रहैं सन्मुख नाम तन मन में गूँजा है।

कर्म शुभ अशुभ को लैकर ज्ञान अगिनी में भूँजा है।

देव मुनि आय दें दर्शन नहीं कछु और सूझा है।

अन्त हरि पुर में हो बैठक पहेली प्रेम बूझा है।८।


शेर:-

पाठ पूजन नहीं वहँ पर न सुमिरन कीर्तन भाई।

कहैं बूचा जौन जावै रूप हरि का सो बनि जाई॥