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९०९ ॥ श्री छबि राज जी ॥


पद:-

बिना शिव शिवा के देखे हमें सब सून लगता है।

लखै हर दम वही प्राणी जो सतगुरु ढूढ़ि करता है।

ध्यान धुनि नूर लै पावै एक रस होके पगता है।

आप जियतै में तरि जावै दूसरों को भी तरता है।

मार्ग यह तै हुआ जिसका नहीं कबहुँ वो गिरता है।५।

देव मुनि संग बैठक हो सुनै हरि जस न टरता है।

प्रेम तन मन से जेहि लागै वही श्रोता व वक्ता है।

बजै अनहद सुघर घट में सुनै अमृत को छकता है।

खड़े बैठे चले लेटे उसे सब सूझि पड़ता है।

द्वैत परदा हटै उसका जिसे यह रंग चढ़ता है।१०।

भजन निष्काम जो करता अन्त हरि धाम चलता है।

कहैं छबि राज सच मानो न वह जग में बिचरता है।१२।