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८६८ ॥ श्री ललिया बाई जी ॥


पद:-

न शब को कल न दिन को कल जे हरि से बिमुख हैं छलिया।

अन्त दोज़ख पकड़ जावैं दूत तहँ खाल लें खलिया।

वहाँ कछु बोलि नहिं पैहैं यहाँ बनते बड़े बलिया।

बदन सारा है तर खूँ से टँगे उलटे नहीं थलिया।

काट फिर मास को सब खायें जम जैसे बनी कलिया।५।

पूरि तन फेरि चट जावैं महा दुख हर समय सलिया।

करै मुरशिद पता पावै तो धुनि परकाश लै चलिया।

सामने राम सीता की छटा हर दम कहैं ललिया।८।