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८६६ ॥ श्री मैनका जी ॥


पद:-

बांकी चितवन तेरी दिलदार क्यों फिरता गलियों में।१।

सिर पर क्रीट श्रवन दोउ कुँडल भूषन बसन संवार।

क्यों फिरता गलियों में०॥

श्यामल गात तिलक केशरि को मुरली कर में धार।

क्यों फिरता गलियों में०॥

पगन में नूपुर छम छम बाजत चाल जगत से न्यार।

क्यों फिरता गलियों में०॥

शीतल मन्द सुगन्ध पवन क्या तन मन लखि मतवार।

क्यों फिरता गलियों में०।५।

अब नहिं जान देहुँ कहुँ अंतै प्राण के प्राण हमार।

क्यों फिरता गलियों में०॥

कहैं मैनका प्यार करूँगी दोनो कर गले डार।

क्यों फिरता गलियों में०॥

सब जग पालन नन्द के लालन चरन कमल बलिहार।

क्यों फिरता गलियों में०।८।