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८६१ ॥ श्री हाफ़िज जी ॥


पद:-

हंसि हंसि के कन्हैया झमकि नाचत।

सखा सखिनि के मध्य प्रिया संग मुरली अधर धरे राजत।

कछनी में मुरली को खोंसत भाव बताय प्रेम पागत।

सखी सखन के मुख चट चूमत कूदत गिरत उठत भाजत।

कर से कर पकरत बहु तन धरि लखि रति काम छिपत लाजत।५।

सुर मुनि चढ़े बिमानन निरखैं जै जै कार कि धुनि गाजत।

यह गति नाचत गावत कोई साज साथ में सब बाजत।

हाफ़िज कहैं करै जब मुरशिद तब लखि तन मन जिय जागत।८।