साईट में खोजें

८४९ ॥ श्री उजीरा जी ॥


पद:-

मुशकिल परै भजन बिन बहिनों अन्त में दूत करैं हैरान।

सब तन लोह कि सांटिन पीटैं लेवैं काढ़ि परान।

लै कर चलैं करैं तहं हाजिर जहँ इजलास क थान।

पेशी होय बताय सकौ क्या लखते सूखै जान।

हुकुम देंय जम करैं मरम्मत मुरछा होय महान।५।

फेरि बांधि कै नर्क में डारैं जहँ पर दुख की खान।

हर दम मारैं औ गरिआवैं नेकौ सुनै न कान।

आंखैं नाक कान मुख भरदें शीश औट के जान।

मजा कि सजा वहां पर यह है मन मति यह बौरान।

भोग करत में मन एकाग्र ह्वै जात वही सुख मान।१०।

पर पति संग क पाप लगै असि जिमि पकड़ैं शैतान।

बुद्धि भृष्ट ह्वै जाय वीर्य्य बल रहै न शर्म ठेकान।

ऊंच नीच कछु सूझि परै नहिं काम क साल्यो बान।

सतगुरु करो भजो निशि बासर पावो कृपा निधान।

जियतै मरै मुक्त सो होवै तब भक्ती ठहरान।

कहैं उजीरा अन्त में हरि पुर जावै बैठि बिमान।१६।