८४२ ॥ श्री शायर जी ॥
पद:-
बिना सुमिरन के दोज़ख में पड़ैगा बे हया सुन ले।
वहां दुख नित नये कलपौं सड़ैगा नहि दया सुन ले।
जवानी के नशे का रंग चढ़ा तुझ को नया सुनले।
इसी से पाप करने में नहीं तुझको हया सुनले।
अन्त जमदूत घेरेंगे करैगा क्या बयां सुन ले।५।
निकालैंगे तेरा जब दम कौन किसका भया सुनले।
संग नेकी बदी जावै न तीसर कोउ गया सुनले।
करो मुरशिद लगै तन मन कहैं शायर दया सुनले।८।