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८३४ ॥ श्री चमेली जान जी ॥


पद:-

लखौ सिय राम राधे श्याम लछिमी बिष्णु छबि छाई।

नहीं तिल भर जगह खाली कहीं हमने सुनो पाई।

नाम जपने की बिधि सतगुरु कृपा कर दीन बतलाई।

धुनी औ ध्यान लय रोशन मिला अभ्यास की भाई।

धुनी अनहद कि क्या प्यारी बजै आनन्द सुख दाई।५।

मस्त सुनि सुनि के तन मन है वरनने में नहीं आई।

कृपा सुर मुनि करैं ऐसी मिलैं प्रति दिन लिपटि धाई।

चमेली जान की अरज़ी करैं सुमिरन सो बनि जाई।८।


दोहा:-

चेली रामानन्द जी, कीन्हीं जब से मोहिं।

कहैं चमेली जान मोहिं हर दम आनन्द होहिं।१।