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८३२ ॥ श्री झाऊ जी ॥


पद:-

श्री सरजू के तट जावो लखो कैसा नज़ारा है।१।

बहै निर्मल परम पावन पाप मोचन कि धारा है।२।

प्रेम तन मन लगा मञ्जन करै एक बार तारा है।३।

होय निर्मल कहैं जाऊ वही हरि का दुलारा है।४।