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८१७ ॥ श्री शिव जी (मरहटा) ॥


शेर:-

मै शिष्य स्वामी राम दास जी समर्थ का।

उपदेश मिल गया था मुझे परम अर्थ का।१।

कहता शिवा जी हरि भजन बिन तन यह ब्यर्थ का।

वादा किया गरभ में सुमिरन की शर्त का।२।