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८०५ ॥ श्री जौहर खाँ जी ॥


पद:-

अदा हो गरभ के एकरार से तब तो रिहाई हो।

नहीं होगी बड़ी मुस्किल कज़ा लेने जब आई हो।

कचेहरी में तेरे कर्मों क सब खाता सुनाई हो।

सखुन मुख से न कछु निकलें परै तहं पर पिटाई हो।

जाय दोज़क में फिर पटकैं परै तन पर नोचाई हो।५।

सिंह औ श्वान अहि कागा रहें चहुँ ओर खाई हो।

कहैं जौहर सहो कल्पों बृथा स्वांसा गंवाई हो।७।