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७९० ॥ श्री महमूदा जी ॥


पद:-

भजन बिन नर तन बिरथा जात।

वाह वाह में निज घर भूले जोड़यो जग से नात।

काम क्रोध मद लोभ मोह के बनिगे सच्चे तात।

अन्त समय जम आनि के घेरें मारें जूता लात।

प्राण निकारि चलैं लै नरके तब रोवत चिल्लात।५।

मातु पिता भ्राता नारी सुत कोई संग न जात।

जिस तन को निज करिके मान्यो कबर में कीड़ा खात।

घोर अँधरिया जम पुर में है नेको नहीं सुझात।

दूतन को तहँ सूझि परत है सुनो कहें जो बात।

ब्याकुल जीव ऊब अति लागै कर मींजत पछितात।१०।

नाना भांति के कष्ट वहां पर वरनि सकै को भ्रात।

ध्यान में लीला यह हम देखा कहत जिया अकुलात।

उन जीवन को पत्थर जानो जे सुनि नहिं घबरात।

सतगुरु का जिन्ह लीन्ह सहारा उनकी लागी घात।

ध्यान धुनी लय नूर पायगे तन मन माहिं सिहात।

महमूदा कह राम सिया छवि लखि हरदम मुसिक्यात।१६।


पद:-

चेली रामानन्द की महमूदा मम नाम।

जिनकी कृपा कटाक्ष ते पूरण भा सब काम।१।