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७८५ ॥ श्री नादिर खाँ जी ॥


पद:-

शान्ति ह्वै बैठो मुझे गुरु पास मन जाने तो दो।

जो मर्ज है उसकी ज़रा दारू को करवाने तो दो।

नाम रस अनुपम दया करि प्रेम से पाने तो दो।

ध्यान धुनि परकाश लय मिलि जाय मिलि जाने तो दो।

रेख पर करमों कि प्यारे मेख मरवाने तो दो।५।

राम सीता की छटा मम सामने छाने तो दो।

सत्संग भक्तों का सदा हरि के चरित गाने तो दो।

नादिर कहैं इस मार्ग पै मुझ दीन को आने दो।८।