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७३५ ॥ श्री: छदामी शाह जी ॥


दोहा:-

कामी क्रोधी लालची, कैसे पावैं राम।

देखन में मानुष बने हैं, पशु अधम निकाम।१।

बिना सतगुरु पावो नहीं, यारों ठीक मुकाम।

कहैं छदामी शाह क्यों, चुप ह्वै बने गुलाम।२।

७३९ ॥ श्री शमशेर खां जी ।


पद:-

ज्ञान की तोप पर भाई सुरति बत्ती को धरि दीजै।

डारि सन्तोष का गोला मोह का गढ़ उड़ा दीजै।

रिआया होय तब बश में बैठि निर्भय मजा कीजै।

ध्यान धुनि नूर लय पासै दुई परदा हटा लीजै।

लखौ शिव शिवा की झाँकी यहाँ औ वहाँ सुख कीजै।५।

करौ सतगुरु पता पावो ये आयू दिन पै दिन छीजै।

नहीं यारों यह तन गुदरी जाय गरुआय जब भीजै।

बजै अनहद सुघर घट में देव मुनि निरखि सब लीजै।

मान अपमान को प्यारे योग अग्नी में हत कीजै।

दीनता प्रेम जिसमें हो उसे यह पथ बता दीजै।१०।

कथा औ कीरतन सब दिन ध्यान दे कर सुना कीजै।

कहैं शमशेर खां भाई अन्त साकेत चलि दीजै।१२।


दोहा:-

निष्काम भक्ति या को कहत, सब में समता मान।

कहैं सत्य शमशेर खाँ हरि पुर चलु चढ़ि यान।१।

७४० ॥ श्री हुल्ला शाह जी ।


पद:-

कहता है शाह हुल्ला, खा लो यहां रसगुल्ला।

जपते नहीं बिसमिल्ला, रोवोगे जैसे पिल्ला।

झूठे जगत में भुल्ला। यम मारि हैं बसुल्ला।

मल मूत्र पीव कुल्ला। भरि भरि पिओ सहुल्ला।६।

७४१ ॥ श्री रोशन शाह जी ।


पद:-

नाम धन नहिं मिला जिनको बृथा में करते हैं ठैं ठैं।

चलैं पापोश शिर ऊपर उठै आवाज़ तब ठैं ठैं।

आय यमदूत दें घुड़की फेरि निज अबलकैं ऐठैं।

तूरि दन्दां सकल देवैं सूक्ष्म तन धरि के मुख पैठैं।

बोलि तब नहिं सकौ यारौं होय मल मूत्र तन ऐठैं।

कहैं रोशन करैं सुमिरन ते हरि ढिग जाय कर बैठैं।६।