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७३६ ॥ श्री गुलाम हुसेन जी ॥


पद:-

कहता गुलाम हुसेन बिधि शारद क हम करते भजन।

चारि मुख भुज चारि पितु के गौर तन लाले बसन।

माता के मुख एक है भुज आठ हैं गोरा बदन।

श्वेत बसन अमोल भूषण जड़े नग जिनमें रतन।

काम रति लखि लाजते नित आय के परते चरन।५।

बीणा लिये माता मनोहर पिता हरि यश उच्चारन।

पिता सृष्टी को रचैं माता सबन पालन करन।

देव मुनि सब दर्श दें तन मन ते रहता मैं मगन।

निष्काम भक्ती जे करैं जग में न वे फिर पग धरन।

धुनि ध्यान लय परकाश पावैं नाम हो रोवन रगन।१०।

बिना सतगुरु होय नहिं सब युगन की है यह चलन।

अन्त में हरि पुर जुटै सरकार के रंग हो बदन।१२।


दोहा:-

कहैं गुलाम हुसेन जो, भजन करैं बसु जाम।

सब में प्रेम हो एक रस सो जावै हरि धाम।१।


सोरठा:-

आवागमन नशाय जो या बिधि सुमिरन करै।

गुलाम हुसेन कह गाय, ना मानै जन्मै मरै।१।