७२९ ॥ श्री सलूक दास जी ॥
पद:-
मेरे मन शान्ति ह्वै बैठो मुझे गुरु पास जाने दो।
बहुत दुख सह हुआ रोगी पता हरि का लगाने दो।
करै प्रभु दीन पै दाया ज़रा नाड़ी दिखाने दो।
नाम की जाय मिलि बूटी चढ़ै रंग मुझ को खाने दो।
धुनी एक तार जारी हो रगन रोवन सुनाने दो।५।
ध्यान परकास लै होवै लिखा बिधि का मिटाने दो।
देव मुनि आय दें दर्शन बिहंसि उर में भिड़ाने दो।
बजै अनहद मधुर घट में अमी पी मुसिकराने दो।
जगै नागिन चलैं चक्कर कमल सातौं खिलाने दो।
महक क्या स्वरन ते उड़ती मस्त ह्वै सर हिलाने दो।१०।
छटा सिय राम की हर दम मेरे सन्मुख में छाने दो।
रहै जब तक जगत में तन सदा हरि जस को गाने दो।
सतोगुन का जो है भोजन शांति चित हो के खाने दो।
ज़िन्दगी इस तरह मेरी दया करके बिताने दो।
दीनता से मुझे प्यारे सीस सब को झुकाने दो।१५।
अंत तन छोड़ि निज पुर को सिंहासन चढ़ि के जाने दो।
कार्य शुभ आ पड़े कोई द्वैत परदा न आने दो।
भिखारी भीख हित आवे उसे भिच्छा लुटाने दो।
भरै झोरी गरीबों की उन्हैं कर गहि उठाने दो।
तरक्की हो मेरी तेरी रजिस्टर में लिखाने दो।२०।