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७२० ॥ श्री आलस्य शाह जी ॥ (५)


शेर:-

निज भाव से सतगुरु कृपा होती है भक्तों मानिये।

ध्यान धुनि परकाश लय में जाय सुधि बुधि सानिये।

अनहद सुनो अमृत पिओ सुर मुनि मिलैं पहचानिये।

नागिन जगै चक्कर चलैं फूलैं कमल बिन पानिये।

छटा छबि श्रृंगार सीता राम सन्मुख तानिये।

अन्त निज पुर बास लो जो अमित सुख की खानिये।६।