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७१२ ॥ श्री काहिल शाह जी ॥ (१)


पद:-

साधन धाम शरीर बखाना। मोक्ष क द्वार गुरु से जाना॥

भाषत वेद श्रवण श्रुति काना। चारों नाम एक ही माना॥

ध्यान प्रकाश समाधि भुलाना। यह सब होत नाम की ताना॥

ररंकार यह शब्द महाना। सब में ब्यापक और बिलगाना॥

डेवढ़ी पर अनहद सुन आना। अमृत पान करो मन माना।५।

सुर मुनि हरि यश करैं बखाना। सब के चरनन शीश झुकाना॥

नागिन चक्र कमल उलटाना। खुशबू भांति भांति की पाना॥

काहिल शाह कहैं सो दाना। जो निशकपट गुरु को माना।८।


दोहा:-

चारों मारग सम लखा काहिल कहैं सुनाय।

वेदन का सबसे सुलभ जानो भक्तों भाय।१।