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६५३ ॥ श्री बना दास जी ॥


पद:-

बनिये राम नाम अधिकारी।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय अनहद बाजै प्यारी।

सुर मुनि मिलैं छको घट अमृत सन्मुख सिय धनुधारि।

नागिन जगै चक्र सब बेधैं कमल खिले सुखकारी।

सतगुरु करो मिले तब मारग जियते लेव सँभारी।

बना दास कहैं अन्त त्यागि तन बैठो भवन मँझारी।६।